1932 की मांग पर न आंदोलन होगा न समाज उठाएगा आवाज़ न नेता दिखेंगे समाजसेवी।Garhwa Tak News
जमशेदपुर। झारखंड में 1932 की मूलवासी-स्थानीयता की मांग अब धीरे-धीरे हाशिए पर जाती दिख रही है। समाजसेवी रामू सरदार, सनत सिंह सरदार और राजू मुखी ने संयुक्त रूप से कहा कि इस मुद्दे पर अब न तो आंदोलन होगा, न समाज उठकर आवाज़ बुलंद करेगा और न ही नेता इसके लिए सड़क पर उतरेंगे।उन्होंने कहा कि वर्षों से यह विषय केवल भाषणों और घोषणाओं तक सीमित है। कई राजनीतिक दलों ने इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया, पर सत्ता में आने के बाद किसी ने गंभीर पहल नहीं की परिणामस्वरूप, आज समाज और संगठन दोनों स्तरों पर चुप्पी है। आम जनता भी अपने दैनिक संघर्षों में उलझकर इस मांग को भुला बैठी है। समाजसेवियों ने स्पष्ट किया कि 1932 की मांग केवल मंचों और अखबारों की सुर्खियों तक सीमित रह गई है। न जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, न ही जनांदोलन की कोई ठोस रणनीति बन रही है। नेताओं की प्राथमिकता अब बदल चुकी है और युवाओं में भी इस मुद्दे के प्रति जागरूकता का अभाव है। रामू सरदार, सनत सिंह सरदार और राजू मुखी ने कहा कि यदि अब भी इस विषय पर गंभीर पहल नहीं हुई, तो आने वाले समय में यह मांग इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगी। उन्होंने समाज के बुद्धिजीवियों और युवाओं से अपील की कि वे अपने अधिकार और पहचान के सवाल को गंभीरता से लें और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाएं कि वे इस पर स्पष्ट रुख अपनाएं। तीनों समाजसेवियों ने चेतावनी दी कि यदि इस उदासीन रवैये को बदला नहीं गया तो आने वाली पीढ़ी 1932 की मांग को केवल एक भूला-बिसरा अध्याय मानकर देखेगी।
